Jagannath Puri Rath Yatra 2025 : क्यों एक मजार के सामने अचानक रुक जाती है भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा, जानें इसकी कहानी

Jagannath Puri Rath Yatra 2025 : पुरी में भगवान जगन्नाथ की विश्वप्रसिद्ध रथ यात्रा आज यानी शुक्रवार से धूमधाम से शुरू हो रही है। आषाढ़ शुक्ल द्वितीया के अवसर पर निकलने वाली इस ऐतिहासिक रथ यात्रा में भाग लेने के लिए दूर-दराज से लाखों श्रद्धालु पुरी पहुंच चुके हैं। भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ तीन अलग-अलग रथों पर सवार होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं, लेकिन क्या आप जानते है कि भगवान जगन्नाथ का रथ हर साल एक स्थान पर एक मजार के सामने आकर खुद ही रुक जाता है। ऐसा क्यों होता है और यह मजार किसकी है, आइए जानते है इस बारे में....
रथ की रस्सी छूने से मिलता है मोक्ष
मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ के रथ की रस्सी को केवल एक बार छू लेने से ही मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि रथ यात्रा के दौरान रथ खींचने के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।

मजार पर क्यों रुकता है रथ?
भगवान जगन्नाथ का रथ हर साल एक स्थान पर एक मजार के सामने आकर खुद ही रुक जाता है। दरअसल, यह मजार किसी आम व्यक्ति की नहीं, बल्कि भगवान के परम भक्त सालबेग की है, जो मुस्लिम धर्म से थे।
कहानी के अनुसार, सालबेग भगवान जगन्नाथ के अनन्य भक्त थे। उनकी भक्ति इतनी प्रबल थी कि भगवान स्वयं उन्हें स्वप्न में दर्शन देने आए। उसी क्षण सालबेग ने प्रभु के चरणों में प्राण त्याग दिए। जब अगले वर्ष रथ यात्रा निकाली गई तो भगवान का रथ मजार के पास जाकर रुक गया। लाखों श्रद्धालुओं ने उस समय भगवान से अपने प्रिय भक्त सालबेग की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की। तभी से यह परंपरा चल पड़ी है कि रथ यात्रा के दौरान रथ उस मजार के सामने थोड़ी देर रुकता है, मानो भगवान स्वयं अपने भक्त को श्रद्धांजलि देने रुके हों।
रथ यात्रा की पारंपरिक व्यवस्था
रथ यात्रा के दौरान भगवान बलराम का रथ सबसे आगे, सुभद्रा का रथ बीच में और भगवान जगन्नाथ का रथ सबसे पीछे चलता है। यह तीनों रथ भगवान की मौसी के घर, जिसे गुंडिचा मंदिर कहा जाता है, जाते हैं। यह यात्रा प्रतीक है उस दिन की जब सुभद्रा ने नगर भ्रमण की इच्छा जताई थी और भगवान अपने भाई के साथ उन्हें लेकर निकले थे। वहां तीनों सात दिनों तक ठहरते हैं और फिर पुनः मंदिर लौटते हैं।
एकता और श्रद्धा का उत्सव
पुरी की रथ यात्रा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह विभिन्न धर्मों और समुदायों के बीच आपसी प्रेम, श्रद्धा और एकता का संदेश भी देती है। सालबेग की मजार के पास रथ का रुकना यह दर्शाता है कि भगवान अपने सच्चे भक्त की जाति या धर्म नहीं देखते, केवल भक्ति और समर्पण मायने रखता है।
नोट: यह लेख धार्मिक मान्यताओं और लोककथाओं पर आधारित है। इसका उद्देश्य जनसामान्य को परंपराओं की जानकारी देना है, न कि किसी तथ्य को वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित करना।
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