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Raksha Bandhan 2025 : भारत का ऐसा गांव जहां भाईयों की कलाई रहती है सूनी, नहीं मनाया जाता रक्षाबंधन

Raksha Bandhan 2025

Raksha Bandhan 2025 : भाई-बहन के प्रेम प्रतीक रक्षाबंधन के त्याहोर की पूरे देश में धूम है, बाजार रंग-बिरंगी राखियों से सजी हुई हैं, मिठाइयों की दुकानों पर भीड़ लगी है। राखी के इस खास दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर प्यार की डोरी बांधेगी और भाई जीवन भर उनकी रक्षा का वचन देगा। जहां एक ओर पूरे देशभर में कल 9 अगस्त को यह पर्व बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाएगा, वहीं दूसरी ओर एक ऐसी जगह है जहां रक्षाबंधन के दिन भाईयों की कलाईयां सूनी रहती है, इस दिन को लोग अशुभ मानते है। अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसी कौन सी जगह है और ऐसा क्यों है? तो चलिए जानते है...

दरअसल, हम जिस जगह की बात कर रहे है वह गाज़ियाबाद से करीब 35 किलोमीटर दूर मुरादनगर तहसील का एक छोटा सा गांव सुराना है। यहां रक्षाबंधन का नाम सुनते ही एक अजीब सी चुप्पी छा जाती है। न कोई राखी खरीदता है, न बहनें भाइयों की कलाई सजाती हैं। यहां राखी बांधना एक अपशगुन माना जाता है, और इसके पीछे छिपी है एक सदियों पुरानी दर्दनाक दास्तान है।

स्थानीय लोगों के अनुसार, गांव का पुराना नाम 'सौराणा' था, जिसे यदुवंशी अहीरों ने 12वीं सदी में राजस्थान के अलवर से आकर बसाया था। युद्धप्रिय स्वभाव के कारण उन्होंने इस गांव को 'सौर्य' (वीरता) से जोड़कर नाम दिया, जो समय के साथ 'सुराना' बन गया।

क्या है इसके पीछे की कहानी?

सन् 1192 में जब तराइन का दूसरा युद्ध हुआ और पृथ्वीराज चौहान को मोहम्मद गौरी ने हराया, तब चौहान सेना के कुछ अहीर सैनिक इस गांव में शरण लेने आ गए। गौरी को जैसे ही इसकी भनक लगी, उसने रक्षाबंधन के दिन गांव पर धावा बोल दिया। 50 हजार की सेना से घिरे इस छोटे से गांव ने साहस नहीं खोया, लेकिन संख्या में कम होने की वजह से हार हो गई। गौरी की सेना ने गांव के हर इंसान को मौत के घाट उतार दिया, जिसमें बच्चे, महिलाएं, बुज़ुर्ग कोई नहीं बचा। उस दिन गांव में खून की नदियां बहीं, और उसी दिन से इस दिन को गांव वाले एक काले इतिहास के तौर पर याद करते हैं।

भाईयों की कलाईयां रहती है सूनी

रक्षाबंधन के दिन जब पूरा देश भाइयों की कलाइयों पर राखियां बांध रहा होता है, तब सुराना गांव की गलियों में सन्नाटा पसरा होता है। कोई पूजा नहीं, कोई तिलक नहीं, कोई मिठाई नहीं – सिर्फ यादें, दर्द और वीरों की कुर्बानी की छाया। यह गांव आज भी अपनी परंपरा और इतिहास को जीवित रखे हुए है। गांववालों का मानना है कि राखी बांधना उस शहादत का अपमान होगा, जिसे उनके पूर्वजों ने इस दिन झेला।

"परंपरा का टूटना हमारे पूर्वजों के बलिदान का अपमान होगा"

सुराना गांव के युवाओं का कहना है कि रक्षाबंधन को लेकर गांव में जो परंपरा चली आ रही है, वह केवल एक रीति नहीं, बल्कि उनके पूर्वजों की शहादत से जुड़ी विरासत है। एक युवा ने भावुक स्वर में कहा, "हम जानते हैं कि रक्षाबंधन देशभर में खुशी और भाई-बहन के प्यार का दिन होता है, लेकिन हमारे लिए यह एक ऐसे दिन की याद है, जब हमारे पूर्वजों ने अपनी जान गंवाई थी। यह दिन हमारे लिए शोक और सम्मान का प्रतीक है।"

उन्होंने कहा कि इस परंपरा को निभाना हमारा फर्ज और गर्व की बात है, और इसे तोड़ना उन वीरों के बलिदान का अपमान होगा जिन्होंने हमारे गांव और संस्कृति की रक्षा के लिए जान दी थी।