Sawan 2025 : भक्तों की परीक्षा लेते हैं बाबा बैद्यनाथ, ज्योतिर्लिंग को छूते ही भक्त भूल जाते हैं अपनी मुरादें, जानिए मंदिर से जुड़े कई रहस्य

Sawan 2025 : सावन का पावन महीना शुरू हो चुका है, देशभर के शिवालयों में शिवभक्तों की भीड़ उमड़ने लगी है। वैसे तो भारत में महादेव के असंख्य मंदिर हैं, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे चमत्कारी ज्योतिर्लिंग के बारे में बताएंगे जहां पहुंचकर भक्त अपनी मुराद ही भूल जाते हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं झारखंड के देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम (Baba Baidyanath) की, जो शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
यहां शिवलिंग छूते ही क्यों भूल जाते हैं लोग अपनी मुराद?
बैद्यनाथ धाम से जुड़ी कई रहस्यमयी बातें हैं, जिनमें सबसे दिलचस्प यह है कि यहां आने वाले भक्त जैसे ही शिवलिंग को छूते हैं, अपनी मनोकामना भूल जाते हैं। कहा जाता है कि यह भोलेनाथ द्वारा ली जाने वाली परीक्षा का हिस्सा है। इसीलिए इसे कामना लिंग भी कहा जाता है – यानी जो सच्चे दिल से परीक्षा में सफल होता है, उसकी हर मुराद पूरी होती है।
एकमात्र ज्योतिर्लिंग जो शक्तिपीठ भी है
बैद्यनाथ धाम का विशेष महत्व इस वजह से भी है कि यह न केवल द्वादश ज्योतिर्लिंगों में शामिल है, बल्कि यह एक शक्तिपीठ भी है। मान्यता है कि यहां माता सती का हृदय गिरा था, इसीलिए इसे हृदयपीठ भी कहा जाता है। यहां भगवान शिव और शक्ति दोनों का वास माना जाता है।
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पंचशूल – जो बनाता है सुरक्षा कवच
बैद्यनाथ मंदिर की छत पर स्थित पंचशूल भी इस धाम को खास बनाता है। इसे पांच विकारों– काम, क्रोध, लोभ, मोह और मद के नाश का प्रतीक माना जाता है। श्रद्धालु मानते हैं कि जब तक पंचशूल मंदिर की छाया में है, तब तक कोई आपदा मंदिर को छू नहीं सकती।
रावण और बैद्यनाथ धाम की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, रावण भगवान शिव का परम भक्त था। उसने शिव को प्रसन्न करने के लिए अपने नौ सिर काटकर शिवलिंग पर चढ़ा दिए। जब वह दसवां सिर काटने वाला था, तब शिवजी प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा। रावण ने शिव से आग्रह किया कि वे लंका चलें।
शिव ने यह शर्त रखी कि रास्ते में कहीं भी अगर शिवलिंग को रखा गया, तो वे वहीं विराजमान हो जाएंगे। रावण ने यह शर्त मान ली। लेकिन देवघर पहुंचते-पहुंचते रावण को विवश होकर शिवलिंग नीचे रखना पड़ा, और वह वहीं स्थिर हो गया। जब वह दोबारा उठाने की कोशिश करने लगा, तो वह टस से मस नहीं हुआ। गुस्से में रावण ने शिवलिंग पर अंगूठा गाड़ दिया। उसी समय से यह स्थान बैद्यनाथ धाम के रूप में प्रसिद्ध हो गया।
क्यों विशेष है यह तीर्थ?
यह माना जाता है कि जो भी श्रद्धा से यहां बाबा की पूजा करता है, उसकी हर इच्छा पूर्ण होती है। यही कारण है कि हर साल सावन में लाखों भक्त कांवड़ यात्रा कर यहां जल अर्पित करने आते हैं।