Sawan 2025 : काशी में यहां विराजमान है मल्लिकार्जुन महादेव, जहां चढ़ाई जाती है जीभ

वाराणसी। काशी के कण-कण में महादेव वास करते है, यहां 12 ज्योतिर्लिंग भी मौजूद हैं। इन्हीं में से एक है मल्लिकार्जुन महादेव का मंदिर। जो अपने आप में काफी खास है, इसे वाराणसी का सबसे ऊंचा मंदिर माना जाता है। आइए जानते है यह मंदिर काशी में कहां स्थित है और इसकी पैराणिक कथा क्या है।
यहां स्थित है मल्लिकार्जुन महादेव का मंदिर
ये मंदिर सिगरा महमूरगंज रोड पर स्थित है। इस मंदिर को मल्लिकार्जुन और त्रित्पुरांतकेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि यहां 84 सीढ़ियां चढ़ने के बाद मिलने वाले दर्शन से भक्तों 84 लाख योनियों से मुक्ति प्राप्त होती है।
चांदी की जीभ चढ़ाने से दूर होते हैं वाणी के दोष
मंदिर में मां काली की प्रतिमा के सामने चांदी की जीभ चढ़ाने की परंपरा है। मान्यता है कि तुतलाने, हकलाने या वाणी से जुड़ी कोई भी परेशानी यहां मन्नत मांगने से ठीक हो जाती है। भक्त जीभ चढ़ाने के बाद उसे किसी को दिखाए बिना मन्नत पूरी होने तक अपने पास रखते हैं और बाद में मंदिर में छोड़ते हैं।
मंदिर से जुड़ी पुरानी मान्यताएं और शिवपुराण का उल्लेख
मंदिर के महंत के अनुसार, शिवपुराण में उल्लेख है कि रामायण युग में श्रृंगी ऋषि का आश्रम इसी स्थान पर स्थित था, जो अयोध्या नरेश दशरथ के राजपुरोहित माने जाते थे। समय के साथ कई महर्षियों ने इस स्थल को अपनी तपस्या का केंद्र बनाया। उनकी घोर साधना के फलस्वरूप यहां भगवान मल्लिकार्जुन महादेव त्रित्पुरांतकेश्वर स्वरूप में स्वयंभू रूप से प्रकट हुए।
कृष्णा नदी और गंगा का जलस्रोत
मूल रूप से आंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर स्थित मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का यह मंदिर एक प्रतीकात्मक स्वरूप माना जाता है। मान्यता है कि तपस्वियों की आराधना से यहां स्वयंभू शिवलिंग के समक्ष कृष्णा नदी का जलस्रोत प्रकट हुआ था। आज भी इस जल का प्रवाह ‘कृष्णा कूप’ में बना हुआ है और इसी जल से भगवान मल्लिकार्जुन का अभिषेक विधिपूर्वक किया जाता है।
बाबा विश्वनाथ का शयनकक्ष
महंत बताते हैं कि यही वह स्थान है जहां बाबा विश्वनाथ के शयनकक्ष का भी वर्णन मिलता है। यह हिस्सा आम भक्तों के लिए बंद रहता है, लेकिन धार्मिक मान्यता के अनुसार, यहीं से बाबा विश्वनाथ विश्राम करते हैं।