Good News! कैंसर के इलाज के लिए अब नहीं पड़ेगी कीमोथेरेपी की जरूरत, यूपी के डाक्टरों ने खोज निकाली दवा

कैंसर का नाम ही डराने के लिए काफी होता है, खासकर जब यह मस्तिष्क से जुड़ा हो। दुनियाभर में मौत के प्रमुख कारणों में से एक कैंसर है, और इसके प्रभावी इलाज की खोज लगातार जारी है। हाल ही में, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के शोधकर्ताओं ने ब्रेन कैंसर के इलाज के लिए एक नई दवा विकसित करने में सफलता हासिल की है।
एआरएसएच-क्यू: ब्रेन कैंसर के खिलाफ नई उम्मीद
यह दवा एएमयू के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभाग और इंटरडिसिप्लिनरी ब्रेन रिसर्च सेंटर में विकसित की गई है। शोधकर्ताओं की कड़ी मेहनत और गहन अध्ययन के बाद इस दवा को भारतीय पेटेंट भी प्राप्त हो चुका है। इस नई दवा को ‘एआरएसएच-क्यू’ नाम दिया गया है, जो विशेष रूप से उन ब्रेन कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने में कारगर है, जो रेडिएशन और कीमोथेरेपी के प्रति प्रतिरोधक होती हैं।
पहले चरण के परीक्षण में मिली सफलता
इस दवा के पहले चरण के परीक्षण के नतीजे बेहद सकारात्मक रहे हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार, यह दवा ब्रेन कैंसर के इलाज में अत्यधिक प्रभावी साबित हो रही है और इसके आगे के परीक्षण तेजी से किए जा रहे हैं।
कीमोथेरेपी की जरूरत नहीं पड़ेगी
इस नई दवा की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इससे इलाज करने पर मरीजों को कीमोथेरेपी की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। इससे न केवल उपचार प्रक्रिया आसान होगी, बल्कि कैंसर के मरीजों को कीमोथेरेपी से होने वाले दुष्प्रभावों से भी बचाया जा सकेगा।
2005 से चल रहा था शोध
ब्रेन कैंसर के इस शोध में प्रमुख भूमिका निभाने वाले डॉ. मेहदी हयात शाही 2005 से इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं। उनके साथ इस रिसर्च टीम में डॉ. मुशीर अहमद, आरिफ अली, मो. मुजम्मिल, बासरी और स्वालीह पी. शामिल हैं। उनकी कोशिश थी कि मौजूदा कीमोथेरेपी दवा, टैमोजोलोमाइड से अधिक प्रभावी एक नई दवा विकसित की जाए।
अब पशुओं पर होगा परीक्षण
पहले चरण में मिली सफलता के बाद अब इस दवा का परीक्षण पशुओं पर किया जाएगा। इस चरण में पहले ब्रेन कैंसर कोशिकाओं को विकसित किया जाएगा और फिर इस दवा का प्रभाव देखा जाएगा। यदि यह परीक्षण सफल रहता है, तो इसे तीसरे चरण के क्लिनिकल ट्रायल के लिए भेजा जाएगा।
मानव उपयोग के लिए अंतिम अनुमति
यदि तीसरे चरण का क्लिनिकल ट्रायल सफल होता है, तो मरीजों के लिए इस दवा का उपयोग किया जा सकेगा। हालांकि, मरीजों को इसे लेने से पहले जरूरी सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करने होंगे। यह शोध भारतीय चिकित्सा विज्ञान के लिए एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है।
डिस्कलेमर: यह लेख केवल जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी उपचार से पहले चिकित्सक की सलाह अवश्य लें।
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